Monday, December 31, 2012

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ है



As the year ends and i look back, i am more disillusioned from the dream Gandhi and Nehru dreamt for us. This is not the country we were promised and i feel so helpless that i cant change a damn thing. So bloody helpless.  


ये कूचे ये नीलाम घर दिल-कशी के
ये लुटते हुए कारवा ज़िन्दगी के 
कहाँ है कहाँ है मुहाफ़िज़ खुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहा है 

मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी 

यशोदा की हम-जींस राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत जुलेखा की बेटी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ है

जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कुचे ये गलियां ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको बुलाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ है
कहाँ है कहाँ हैं कहाँ हैं ?

I was one of them.